आनंदीबाई जोशी
परिचय :-
ये एक ऎसा नाम है जो हमारे भारत देश मैं चिकित्सा क्षेत्र मैं क्रांति लाया है ! जी हा आनंदीबाई गोपाल जोशी, ये एक महाराष्ट्रियन परिवार मैं जन्मी लड़की है ! जिन्होंने उस जमाने में जंहा औरतो को घर से बाहार न जाने दिया जाता था, उस ज़माने मैं इन्होने डॉक्टरेट पदवी हासिल कर ली थी।
इनका जन्म महाराष्ट्र के कल्याण मैं 31 मार्च 1865 मैं इनके नाना नानी के घर हुआ था! ओ जब महज नौ साल की थी तभी उनका विवाह उनसे उम्र मै बिस साल बड़े संगमनेर के गोपालदास जोशी से हुआ था! पुराने ज़माने मैं शादी के बाद अपनी पत्नी का नाम बदल देते थे, वैसे ही उनका मायके वाला यमुना नाम बदल के आनंदीबाई रख दिया ! उनके सुखी परिवार मैं एक अनहोनी घटना जिनके कारण वो बहोत ही हताश और निराश हो गई थी, तभी उन्होंने अपने मन ही मन मैं गांठ बांधली और खूब महेनत करके अपने मक़ाम को हासिल कर लिया और इतिहास बना दिया !
तो हुआ यु की वो जब चौदह साल की थी, तो उनके हस्ते-खेलते परिवार मैं एक नन्हे बचे का आगमन हुआ! बच्चे के आने से उनका परिवार हर्षोलासित था, सारे परिवार मैं खुशयाही खुशिया थी, लेकिन क्या पता उनके ख़ुशी जीवन को किसकी नजर लग गई, उनकी ख़ुशी मातम मैं बदल गई ! चिकित्सा उपचार न मिलनेसे उनका लड़का दस दिनहि जीवित रहा! आनंदीबाई को इस बात का बहोत बड़ा सदमा लगा, और यही से उनके जीवन मैं बदलाव आ गया, लेकिन उनका यह सफर बहोत ही कठिन था !
आनंदीबाई के पति कल्याण पोस्ट ऑफिस मैं कारकुन थे ! वहा से उनका तबादला अलीबाग और फिर वहा से कलकत्ता मैं हुआ ! वो एक पुरोगामी वक्तिमत्व के इंसान थे ! फिर भी उनोह्णे उस ज़माने मैं औरोतोको शिक्षा के लिए प्रोत्साहन देते थे ! उन्होंने अपनी बीबी को डॉक्टर बनानेका सपना देखा था, मराठी लेखक लोकहितवादी से गोपालराव बहोत ही प्रेरित थे ! लोकहितवादी द्वारा लिखे गए शतपत्रे हमेशा पढ़ते थे , उनकी प्रेरणा से ही आनंदीबाई को गोपालराव अंग्रेजी पढ़ाना चाहते थे ! जब गोपालराव का तबादला कोलकता मैं हुआ तभी उन्होंने आनन्दीबाई को संस्कृत और अंग्रेजी पढानेका तय किया !
चिकित्सा शिक्षा :-
जब आनंदीबाई को चिकित्सा शिक्षा पढ़ाने की बात आई तो उनके पति गोपालराव ने अमेरिका मैं कुछ पत्र वेवहार किया, लेकिन उस शिक्षा को प्राप्त करने के लिए उन्हें ईसाई धर्म अपनाने को कहा पर उन्होंने उनके धर्म को स्वीकार नहीं किया ! बाद मैं गोपालराव के हठ के कारन आनंदीबाई को ईसाई धर्म अपनाये बिना ही 1883 मैं पेंसिल्वेनिया के महिला चिकित्सा महाविद्यालय मैं दाखिला करवाया गया !
एक भाषण से उनकी ज़िन्दगी बदल गई :-
शुरवात मैं आनंदीबाई के डॉक्टर बनने पर तत्कालीन भारतीय समाज मैं काफी विरोध हुआ था ! समय आनंदीबाई ने कोलकत्ता मैं एक भाषण दिया था , और उस भाषण मैं उन्होंने भारत मैं महिला डॉक्टरों की कितनी जरुरत है ! और इसके लिए उसे धर्म बदलने की जरूरतं नहीं है ! मैं अपना हिन्दू धर्म और संस्कृति कभी नहीं छोडूंगी ! मैं अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद भारत आना चाहती हु और महिलाओ के लिए एक मेडिकल कॉलेज खोलना चाहती हु !
लोगो को आनंदीबाई का भाषण बहुत पसंद आया , इससे न केवल उनका विरोध काम हुआ बल्कि पुरे भारत से आर्थिक सहयोग एकत्रित करके उन्हें इस कार्य मैं मद्दत भी मिली ! तत्कालीन व्हाइसरॉय ऑफ इंडिया ने भी उनके लिए 200 रुपये के फण्ड की घोषणा की !
मेहनत रंग लाई :-
आनंदीबाई ने अपनी कड़ी मेहनत से मार्च 1886 मैं अपनी एम डी की डिग्री हासिल कर ली ! ये आनंदीबाई की कड़ी मेहनत ही थी, जो रंग लाई ! एम डी के लिए उन्होंने ” आर्यन हिंदुओंमें प्रसूति विद्यान ” विषय पर एक शोध प्रबंध लिखा ! जो एम डी होने के बाद सारे भारतवाशियोकि और से उनका अभिनन्दन भी किया गया ! इतनाही नहीं बल्कि महारानी विक्टोरिया ने भी उन्हें बधाई दी ! जब वे भारत लौटी तो उनको कोल्हापुर के अलबर्ट एडवर्ड अस्पताल मैं महिला वार्ड का प्रभार सौपा गया !